कोरोना वायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है। इनमें वे लाेग भी शामिल हैं, जाे दूसरे शहराें में नाैकरी-मजदूरी करने गए थे और अब वापस अपने गांव लाैट रहे हैं। साधन नहीं हाेने के कारण वे भूखे-प्यासे पैदल आ रहे हैं। इनसे पूछो- कोरोनावायरस के संक्रमण की राेकथाम के लिए लगाए गए लाॅकडाउन का दर्द। हाईवे पर रात के अंधेरे को चीरते हुए ये लोग सिर्फ अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए सरकार को जगह-जगह भोजन व आवास की व्यवस्था करनी चाहिए। प्रशासन कोरोनावायरस को लेकर इतनी जागरुकता दिखा रहा है तो फिर भुखमरी जैसी समस्या पर भी ध्यान देना चाहिए। लोग जिंदा रहेंगे तभी तो कोरोनावायरस से लड़ पाएंगे। इंदौर हाईवे पर ऐसे कई लोग पैदल चलते दिखाई दिए, जो भूखे पेट अपने गांव की ओर कदमताल कर रहे थे। ऐसा ही नजारा शाजापुर हाईवे पर।
बड़वाह में 2 पूड़ी खाईं, इसके बाद से खाना नहीं मिला
खंडवा-छैगांवमाखन रोड पर दोंदवाड़ा के पास 70 वर्षीय बुजुर्ग सुनील मिश्रा के कंधे पर 20 किलो कबाड़े का वजन था और वह ओंकारेश्वर से खंडवा पैदल चले आ रहे थे। उन्होंने कहा बड़वाह में दो पूड़ी खाई, उसके बाद से खाना नहीं मिला। सुनील मिश्रा बुरहानपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा- भूख से दम निकल रहा था। अब राहत मिली। 10 से अधिक मजदूर इंदौर रोड पर एक कार शोरूम के बाहर बरामदे भूखे साेने की तैयारी में थे। भिलाईखेड़ा के मनोज ने बताया पालदा स्थित दाल मिल में काम करता हूं। सेठ ने कुछ रुपए दिए और कहा यहां से चले जाओ। सोचा इंदौर में भूख-प्यास से मरने से अच्छा तो अपने गांव में ही चलकर मरते हैं। रात 12 बजे भास्कर प्रिंट यूनिट परिसर में इन्हें खाना खिलाया।
शाजापुर में भी हाईवे पर दिखा ऐसा ही नजारा
कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण को लेकर 21 दिन के लॉकडाउन का सबसे बुरा असर दूसरे शहर या राज्यों में जाकर उद्योगों और अन्य स्थानों पर मजदूरी करने वालों पर पड़ा है। लॉकडाउन के बाद सबकुछ बंद हैं और ऐसे में इनके सामने रहने खाने की विकट समस्या खड़ी हो गई है। कोई रास्ता नहीं दिखने पर ये मजूदर अपने घरों के लिए पैदल ही रवाना हो रहे हैं। शाजापुर हाईवे पर भी 40 से 50 लोग परिवार के साथ पैदल जाते नजर आए। इनमें से कोई आगरा से उज्जैन तो कोई ग्वालियर से उज्जैन, इंदौर देवास, खंडवा या खरगोन का निवासी था। इनमें से कई लोग चार दिन से पैदल ही सफर कर रहे थे। उन्हांेने बताया कि यात्रा के दौरान ज्यादा समय भूखे ही चले, क्योंकि उनके पास ना कुछ खाने को था ना ही इतने रुपए... किसी के पास थोड़े बहुत रुपए थे भी तो कोई दुकान खुली नहीं नजर आई। उन्होंने बताया कि इस दौरान जगह-जगह उनसे पूछताछ हुई, लेकिन किसी ने उन्हें खाने के लिए पैकेट भी उपलब्ध नहीं करवाए। बस पूछताछ के बाद आगे के लिए रवाना कर दिया।
भूखे प्यासे सूरत से बच्चों को लेकर निकल पड़े पैदल
धार में भी यही नजारा देखने को मिला... गुजरात में काम करने गए यहां के मजदूरों की भी हालत अन्य जगहों के मजदूरों के समान ही है। लॉकडाउन के बाद यहां की सारी फैक्ट्रियां बंद होने से मप्र और राजस्थान के के कई मजदूरों के सामाने राेजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में वहां भूखे मरने की बजाय मजदूरों ने पैदल अपने गांव निकलना ही मुनासिब समझा। ये लोग सूरत से पैदल ही परिवार को लेकर निकल पड़े। बच्चों को लिए ये मजबूद मजदूर भूखे ही चलते रहे। इममें से कुछ ने बताया कि वे सूरत में हीरा कारखानों में काम करते हैं। एक दिन पता चला कि पूरे देश को बंद करने के आदेश हुए हैं। इसके बाद हमें भी काम पर नहीं आने को कहा गया। अगले दिन देखा तो पूरा शहर बंद था। बस पुलिस की गाड़ियां दौड़ रही थीं। पूछने पर पता चला कि महीनों तक ऐसा ही रहने वाला है। इस पर सोचा भूखे मरने से अच्छा है गांव ही चलें। बस स्टैंड पहुंचे तो सन्नाटा पसरा था। इसके बाद हम सब ग्रुप में गांव के लिए पैदल ही निकले। धार तक पूछताछ तो हुई लेकिन किसी ने खाने को नहीं पूछा। यहां पर हमें कुछ लोगों ने खाने के पैकेट दिए। डॉक्टरों ने चेकअप भी किया।